pratikriya
Saturday, November 6, 2010
Thursday, October 28, 2010
पागुर
कहो दोस्त ,
जब मुझे चबाया ,
पागुर कहाँ किया ?
जब चुगली खायी ,
कांपा नहीं जिया ?
अहो दोस्त ,
मैं तो पानी था |
यूँ ही पी जाते
पैने दांत दिखा कर
तुमने अच्छा नहीं किया |
दबी सांस में साँसे खीची ,
कैसे सांस लिया ?
बंधन था कच्चे धागे सा ,
फांस गले क्यों लिया
मेरा तो जीवन था छुद्र
देने स्नेह तुम्हे |
तुमने छुद्र स्नेह भी , क्यों ?
कर, लेने नहीं दिया !
जब मुझे चबाया ,
पागुर कहाँ किया ?
जब चुगली खायी ,
कांपा नहीं जिया ?
अहो दोस्त ,
मैं तो पानी था |
यूँ ही पी जाते
पैने दांत दिखा कर
तुमने अच्छा नहीं किया |
दबी सांस में साँसे खीची ,
कैसे सांस लिया ?
बंधन था कच्चे धागे सा ,
फांस गले क्यों लिया
मेरा तो जीवन था छुद्र
देने स्नेह तुम्हे |
तुमने छुद्र स्नेह भी , क्यों ?
कर, लेने नहीं दिया !
Tuesday, October 26, 2010
दिल का मेरा ये हाल है
बिन बिका लौटा हुआ सा- माल है . बाज़ार में तेरे दिल का मेरा ये हाल है|
बेच आती दाम ऊंचे |
अगर होती यह बिकाऊ..
आत्मा तो है हमारी .
सबल है निकल नहीं पाऊ
साख गिर गयी .
किस तरह अब स्नेह की
बाज़ार में ऊँची लगी है ,
सिर्फ बोली देह की |
बेच आती दाम ऊंचे |
अगर होती यह बिकाऊ..
आत्मा तो है हमारी .
सबल है निकल नहीं पाऊ
साख गिर गयी .
किस तरह अब स्नेह की
बाज़ार में ऊँची लगी है ,
सिर्फ बोली देह की |
आसमा से
उसने ठान ली है आसमा से चाँद लेने की ,
मुझे कंधे लगा दो ,
ज़रा उपर उठा दो |
हाथ मेरे चाँद आए ना आए ,
दर्द कन्धों की गवाही तो करेगा |
मुझे कंधे लगा दो ,
ज़रा उपर उठा दो |
हाथ मेरे चाँद आए ना आए ,
दर्द कन्धों की गवाही तो करेगा |
Sunday, October 24, 2010
आत्म्च्युत पुरुष
जहा मिले मौका , मुंह मारे |
गिद्ध के बड़े चोंच भी हारे
कैसे पाया स्वाद मांस में ?
आत्म्च्युत पुरुष बता रे !
कैसे तूने घात लगाया ?
जिस हड्डी में हाथ लगाया ,
उस नस में फैले खून का -
तू विस्तार बता रे !
माँ का दूध , पिता कि शान
पचा ना पाया ,हूँ हैरान
तेरे धर्म का कौन बटखरा
बोलो बात कहा रे ?
तू दो पद का स्वामी
चतुश पाद का ज्ञानी ,कामी !
ज्ञान त्वचा का लिया कहा से ?
बोल नहीं पाते हैं स्वान
पर तू आज बता रे
आँख में आँख डाल कर देख
मिटा यह श्वान कर्म कि रेख
धरती माँ के उड़ पर
क्यों लिखता पापाचरण अभिलेख ?
गिद्ध के बड़े चोंच भी हारे
कैसे पाया स्वाद मांस में ?
आत्म्च्युत पुरुष बता रे !
कैसे तूने घात लगाया ?
जिस हड्डी में हाथ लगाया ,
उस नस में फैले खून का -
तू विस्तार बता रे !
माँ का दूध , पिता कि शान
पचा ना पाया ,हूँ हैरान
तेरे धर्म का कौन बटखरा
बोलो बात कहा रे ?
तू दो पद का स्वामी
चतुश पाद का ज्ञानी ,कामी !
ज्ञान त्वचा का लिया कहा से ?
बोल नहीं पाते हैं स्वान
पर तू आज बता रे
आँख में आँख डाल कर देख
मिटा यह श्वान कर्म कि रेख
धरती माँ के उड़ पर
क्यों लिखता पापाचरण अभिलेख ?
मेरा ह्रदय
एक जगह है बाकि ,
जहा व्यभिचार तेरा ,
कर कठिन श्रम भी
नहीं करता बसेरा |
तुम निरंकुश , आततायी
उस जगह से डरो ,
एक अंग रहने दो मेरा ,
मेरे सारे अंग वरो |
इस ह्रदय कि कोख में ,
स्नेह कि नदिया बहीं हैं ,
इस ह्रदय कि कोख ने
स्नेह का सूखा सहा है |
यह ह्रदय है ,
जो तड़प कर
भावना के भूख में -
स्वं मरता है
जीवन कि अकथ कथा को ,
बिना व्यथा के सहता है
यही ह्रदय है जो मेरे संग ,
बिना दुःख हास्य सहे रहता है
इसको क्षमा करो ,
प्रिय तुम मेरा ह्रदय ना लो |
जहा व्यभिचार तेरा ,
कर कठिन श्रम भी
नहीं करता बसेरा |
तुम निरंकुश , आततायी
उस जगह से डरो ,
एक अंग रहने दो मेरा ,
मेरे सारे अंग वरो |
इस ह्रदय कि कोख में ,
स्नेह कि नदिया बहीं हैं ,
इस ह्रदय कि कोख ने
स्नेह का सूखा सहा है |
यह ह्रदय है ,
जो तड़प कर
भावना के भूख में -
स्वं मरता है
जीवन कि अकथ कथा को ,
बिना व्यथा के सहता है
यही ह्रदय है जो मेरे संग ,
बिना दुःख हास्य सहे रहता है
इसको क्षमा करो ,
प्रिय तुम मेरा ह्रदय ना लो |
Subscribe to:
Posts (Atom)