pratikriya
Monday, October 18, 2010
स्नेह गणित
शून्य मै और तुम अंक मेरे
हम परस्पर साथ हों
क्यों शून्यता घेरे
जब गणित की हो विधा
स्नेह के विज्ञानं में
फिर कला क़ी आस क्यों ?
जोरने में हुए हो पूर्ण अक्षम
फिर घटाने में अटल विश्वास क्यों ?
1 comment:
anupriya
November 29, 2010 at 10:15 AM
sach ganit ka itna sahi prayog adbhut hai....
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sach ganit ka itna sahi prayog adbhut hai....
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