कहीं पहाड़ी सड़क बन गयी,
खड़ा पहाड़ अनमना |
जगह जगह पर झुकी झोपड़ी ,
पग पग बहु मंजिल बना |
हर एक मोड़ पर झुण्ड बांस का,
आँगन आँगन वृद्ध तना |
वृक्ष हीनता का ना रंज ,
घेर खड़े हैं हमें करंज |
यहाँ धूप में नहीं है गर्मी ,
बदल में ठहरे ना नमी |
मन क़ी धरती फटती जाती ,
भावुकता क़ी देख कमी |
रुके धूप तो हवा दौड़ती ,
छाप खुशनुमा कभी छोडती |
कभी रेडती लहर ठण्ड क़ी,
पुनः दौड़ फिर सूर्य हेरती |
हेर हेर सूरज है लाती ,
गर्म दोपहर हमें दिखाती |
थोड़ी गर्मी लगी इधर कि ,
बिन baadal पानी बरसाती |
मौसम का देख नजारा ,
बिजली ने थप्पड़ मारा |
ऐसे जोर से कडकी ,
डर से पसली फडकी |
खिड़की का सीसा दड़का ,
मन मेरा यहाँ से हड़का |
बात कहू मैं साँची ,
यही शहर है रांची...
यही शहर है रांची-
यहाँ हर शख्स रंगीला ,
जब सुखा हर जगह पड़ा हो
यहाँ हो मौसम गीला ,
सूखे मौसम में भी देह ने
लहर शीत का झेला ,
यहाँ सुख में खाते भाई पार्टी दुःख में छोड़ अकेला |
क्या कहे यहाँ हर पल मौसम गीला -
सूखा है |
हर एक भरे पेट पर,
हर एक भूखा है |
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