Thursday, October 21, 2010

मौसम रांची का

कहीं  पहाड़ी  सड़क  बन गयी,
खड़ा  पहाड़  अनमना |
जगह जगह पर झुकी झोपड़ी ,
पग पग बहु मंजिल बना |
हर एक मोड़  पर झुण्ड बांस  का,
आँगन आँगन  वृद्ध तना |
वृक्ष  हीनता  का ना रंज ,
घेर खड़े  हैं हमें करंज |
यहाँ धूप में नहीं है गर्मी ,
बदल में ठहरे ना नमी |
मन क़ी धरती फटती जाती ,
भावुकता क़ी देख कमी |
रुके धूप तो हवा दौड़ती ,
छाप   खुशनुमा कभी छोडती |
कभी रेडती  लहर ठण्ड क़ी,
पुनः दौड़  फिर सूर्य हेरती |
हेर हेर सूरज है लाती ,
गर्म दोपहर हमें दिखाती |
थोड़ी  गर्मी लगी इधर कि ,
बिन baadal पानी बरसाती |
मौसम का देख नजारा ,
बिजली ने थप्पड़ मारा |
ऐसे जोर से कडकी ,
डर से पसली फडकी |
खिड़की   का सीसा दड़का ,
मन मेरा यहाँ से हड़का |
बात कहू मैं साँची ,
यही शहर है रांची...
यही शहर है रांची-
यहाँ हर शख्स रंगीला ,
जब सुखा हर जगह पड़ा  हो
यहाँ हो मौसम गीला ,
सूखे मौसम में भी देह ने
लहर शीत का झेला ,
यहाँ सुख में खाते भाई पार्टी दुःख में छोड़  अकेला |
क्या कहे यहाँ हर पल मौसम गीला -
 सूखा है |
हर एक भरे पेट पर,
 हर    एक भूखा है |

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