pratikriya
Sunday, October 24, 2010
छीटे मनोरथ के
मैं सफ़ेद ,है मुझे खेद |
हूँ क्लांत , मलिन, सुस्त,नीरस |
तू खुश मिजाज ,बहुरंगी
रंगों से चूता रस
कुछ रस के छीटे पड़े मनोरथ पर मेरे
मैं बेकार हुई ,
तू ठहरा रंगीन ,
मैं थब्बेदार रही |
1 comment:
anupriya
November 29, 2010 at 10:13 AM
shwet ki vyatha kya khub kihi gayi hai....
Reply
Delete
Replies
Reply
Add comment
Load more...
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
shwet ki vyatha kya khub kihi gayi hai....
ReplyDelete