Sunday, October 24, 2010

आत्म्च्युत पुरुष

जहा मिले मौका , मुंह  मारे |
गिद्ध के बड़े चोंच भी हारे
कैसे पाया स्वाद मांस में ?
आत्म्च्युत पुरुष बता रे !
कैसे तूने घात लगाया ?
जिस हड्डी में हाथ लगाया ,
उस नस  में फैले खून का -
तू विस्तार बता रे !
माँ का दूध , पिता कि शान
पचा ना पाया ,हूँ हैरान
तेरे धर्म का कौन बटखरा
बोलो बात कहा रे ?
तू दो पद का स्वामी
चतुश पाद का ज्ञानी ,कामी !
ज्ञान त्वचा का लिया कहा से ?
बोल नहीं पाते हैं स्वान
पर तू आज बता रे
आँख  में आँख  डाल कर देख
मिटा यह श्वान कर्म कि रेख
धरती माँ के उड़ पर
क्यों लिखता पापाचरण   अभिलेख ?  

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