Friday, October 22, 2010

दिल की जमीं

हैं नहीं अनुकूल मौसम मन का ,
ठूठ पसरे हुए कुछ पेड़ सी है जिन्दगी |
टीले नुमा पत्थरों   का ढेर सा  ह्रदय है
है प्यास भावना की , पानी नहीं है ,
पर  ,मत डरो सद्भावना की सुखाड़ से ,
सत्य के कुछ आधुनिक हथियार रख
बढते चलो आगे , पसीना पोछ कर ,
 "ड्रिल  " करो धरती
झूठ के सब ठूठ पौधों को उखारो
तोड़ दो पत्थर पानी बहा दो
यह शपथ लो माथ में
यह नहीं दुर्भाग्य स्थाई हमारा ,
है असर ऋतू का भी की
सुहाना मंजर नहीं है ,
खोद कर देखो जमी दिल की
हुआ अभी बंजर नहीं है |

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