Thursday, October 21, 2010

मेरा जहाँ

माना नहीं मेरा यहाँ नामो निशा  है ,
पर अभी भी -
किसी खम्बे में दिल अटका
किसी पाए में जान है ,
किसी मेहराब में है आत्मा ,
हर कदम,कदमो के निशा हैं
एई भाई !
मैं बहन तेरी
बेटी थी यहाँ कि ,
आज माँ हूँ
बताऊ  कौन सा सच ?
कि मैं कहा हूँ ?
कहाँ कि हवा मेरी है ?
कहाँ  आसमान मेरा है ?
कहूँ  किससे ? संभाले रख
कि यह जहां मेरा है ,
ठहरना है नहीं मुझको कहीं
ना जमीं मेरी ना मकान मेरा है ,
जहाँ मैं हूँ
वहां मौसम नहीं बदलता है
बदल जाते हैं घर ,
अरमान नहीं बदलता है
कभी भूले से भी
अगर इक  बार आएंगे ,
नजर भर देख लेंगे बस
दुवायें  देकर जायेंगे |

No comments:

Post a Comment