pratikriya
Thursday, October 21, 2010
हे महाजन !
चक्र्व्रिधि ब्याज लेना ,
जिन्दगी नीलाम कर दूंगी
मुझे मंजूर है ,
लिया था उधार जो , वह प्यार था |
भार उसका ही ह्रदय पर तुम उठाना .
स्नेह का तुम सूद खाना ,
मूल को मत भूल जाना |
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