Thursday, October 28, 2010

पागुर

कहो दोस्त ,
जब मुझे चबाया ,
पागुर कहाँ   किया ?
जब चुगली खायी ,
कांपा नहीं जिया ?
अहो दोस्त ,
मैं तो पानी था |
यूँ  ही पी जाते
पैने दांत दिखा कर
तुमने अच्छा  नहीं किया |
दबी सांस में साँसे खीची ,
कैसे सांस लिया ?
बंधन था कच्चे  धागे सा ,
फांस गले क्यों लिया
मेरा तो जीवन था छुद्र
देने स्नेह तुम्हे |
तुमने छुद्र स्नेह भी , क्यों ?
 कर, लेने नहीं दिया !

No comments:

Post a Comment