Thursday, October 21, 2010

प्रकाशित आत्मा

हे अस्ताचल के सूर्य ,
उदित होकर कल आना |
अज दुबक कर रह लुंगी मै ,
बाकि रखना शक्ति किरण में
फिर तू मुझे उठाना |
तेज तुम्हारा ग्रहण कर लिया ,
मिला तुम्हारा तत्व सारा |
शक्ति ली तुमसे ,
प्रकाशित आत्मा कि |
छुप जाऊ नहीं कही ,
अमानवीय छितिज आकाश में ,
जलती रहू निरंतर
सबके स्वार्थ धरा पर ,
रख कर चिर कालिक धैर्य
सफल हो सबके कार्य अनंत ,
नहीं हो कभी सृष्टि का अंत |

No comments:

Post a Comment