Sunday, October 24, 2010

उसड़ संगति

अभिशप्त जन्म कि क्या भाषा ,
अभिशप्त जन्म का कैसा बोल ?
जहा कही भी मैं पग रखूं ,
वह कि धरती जाती डोल |
कैसे बोलूं कष्ट ह्रदय का ?
कैसे दूँ मन गांठे खोल ?
बदल रहा है मौसम  मन का ,
स्नेह कि हवा दे रही दस्तक
अंकुर देता बीज ह्रदय में ,
हुई भावना नतमस्तक |
उसड़ संगती के संयोग ने ,
जीवन वज्र किया
छुवन नहीं महसूस कर रहा ,
किसने स्नेह लिया !

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