Friday, October 22, 2010

अथक प्रयास

छमा   करो तुम्हे छेड़ा ,
मेरा उद्देश्य युद्ध नहीं
मैं निरुद्द्येश दौड़ती हू |
युद्ध प्रेमियों के पीछे
उसे पकड़ कर पटकना ,
मेरा उद्देश्य नहीं
मैं निरुद्देश्य दौड़ती हू |
और दौड़ते दौड़ते थक कर
सर पटक लेती हू किसी मंदिर के चबूतरे पड़ ,
यह क्रिया अनवरत करती हू अथक
निरंतर अथक प्रयास के बाद
थक कर -
पूछती हू-
इश्वर और कब तक  ?
मिलता है प्रश्न का उत्तर ,
माथे की नसों की फरफराहट दे रही है मुझे
पृथ्वी पर शांति मय जीवन  चक्र की आहट ,
मन कहता है दौड़ते रहो बस दौड़ते रहो
सांस जब थोड़ी बचेगी इश्वर स्वं   कहेंगे सब कुछ ,
अभी कुछ मत कहो
थोडा सहो और दौड़ते रहो |

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