pratikriya
Friday, October 22, 2010
निष्फल
लिखे पन्ने कि लिखावट सी तुम्हारी जिन्दगी ,
अपने ही अर्थ को मिटाती सी जिन्दगी
मिटे हुए अर्थ कि अनर्थ सी जिन्दगी ,
मूक है , बबूल सी
कांटे चुभाती जिन्दगी |
कूटते रह गए
रहे निष्फल ,
होती रही शर्मिंदगी
एक लोहे के चने सी जिन्दगी |
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